Mor aangna ma gonda full re suva geet lyrics:- (मोर अंगना म गोंदा फुल रे lyrics ) ये सुवा गीत हमर छत्तीसगढ़ के पारम्परिक लोग गीत हरे जेला महिला मन दूवारा गाथे, ये सुवा गीत ला देवारी तिहार के चार दिन पहली गांव शहर अउ पारा बस्ती म गाके नाचते ये गीत ला भावना, मानसी अउ आकांक्षा धनकर हा गए गेहे।
मोर अंगना म गोंदा फुल रे 𝙡𝙮𝙧𝙞𝙘𝙨
गीत के बोली | मोर अंगना मा गोंदा फुल रे। |
गायिका | भावना, मानसी अउ आकांक्षा |
lyrics (लिरिक्स) | Dr.PC Lal Yadav |
Recording(रिकॉर्डिंग ) | स्वप्निल स्टूडियो रायपुर |
Mor angna ma gonda.. suva geet

मोर अंगना म गोंदा फुल रे 𝙡𝙮𝙧𝙞𝙘𝙨
तरी हरी ना ना मोर ना ना री ना ना
मोर अंगना मा गोंदा फुल रे,
तरी हरी ना ना मोर ना ना री ना ना
मोर अंगना मा गोंदा फुल रे,
धनि मायरुआ के झूले
मोर अंगना मा गोंदा फुल रे,
धनि मायरुआ के झूले
मोर अंगना मा गोंदा फुल रे,
तरी हरी ना ना मोर ना ना री ना ना
मोर अंगना मा गोंदा फुल रे,
तरी हरी ना ना मोर ना ना री ना ना
मोर अंगना मा गोंदा फुल रे,
धनि मायरुआ के झूले
मोर अंगना मा गोंदा फुल रे,
धनि मायरुआ के झूले
मोर अंगना मा गोंदा फुल रे,……..
सुरूर सुरूर चले सुघर पुरवाही
मोर अंगना मा गोंदा फुल रे,
सुरूर सुरूर चले सुघर पुरवाही
मोर अंगना मा गोंदा फुल रे,
तितली भौरा झूलना झूले
मोर अंगना मा गोंदा फुल रे,
तितली भौरा झूलना झूले
मोर अंगना मा गोंदा फुल रे,……
दोना ममहावे मोर मन ला लोभावे
मोर अंगना मा गोंदा फुल रे,
दोना ममहावे मोर मन ला लोभावे
मोर अंगना मा गोंदा फुल रे,
माया के मुंदरी झन उले
मोर अंगना मा गोंदा फुल रे,
माया के मुंदरी झन उले
मोर अंगना मा गोंदा फुल रे,……
तुलसी के बैरवा में बारेव मैं दियना
मोर अंगना मा गोंदा फुल रे,
तुलसी के बैरवा में बारेव मैं दियना
मोर अंगना मा गोंदा फुल रे,
माया मयारू झन भुलाय
मोर अंगना मा गोंदा फुल रे,
माया मयारू झन भुलाय
मोर अंगना मा गोंदा फुल रे,…….
तरी हरी ना ना मोर ना ना री ना ना
मोर अंगना मा गोंदा फुल रे,
तरी हरी ना ना मोर ना ना री ना ना
मोर अंगना मा गोंदा फुल रे,
धनि मायरुआ के झूले
मोर अंगना मा गोंदा फुल रे,
धनि मायरुआ के झूले
मोर अंगना मा गोंदा फुल रे,
धनि मायरुआ के झूले
मोर अंगना मा गोंदा फुल रे,
धनि मायरुआ के झूले
मोर अंगना मा गोंदा फुल रे,
धनि मायरुआ के झूले
मोर अंगना मा गोंदा फुल रे,…………..
छत्तीसगढ़ के जानेमाने गीत सुवा गीत जेला छत्तीसगढ़ के मइनखे मन हा देवारी तिहार के चार दिन आघू के गाए अउ नाचे जाथे ये एकर सेती करे जाते कबर की छत्तीसग़ढ के ये परम्परा सदियों से चले आवत हे जेकर ह्यूमन मान रख के एकर सम्मान करथन अउ ये हमर परम्परा ला आगे भी लेके जाबो।
छत्तीसगढ लोक कथाओं की दृष्टि से बहुत समृद्ध है। मानव की प्राचीनतम संस्कृति यहाँ भित्ति चित्रों, नाट्यशालाओं, मंदिरों और लोक नृत्यों के रूप में आज भी विद्यमान है। यहाँ की लोक रचनाओं में नदी-नाले, झरने, पर्वत और घाटियां तथा ास्य यामला धरती की कल्पना होती है। मध्य काल में यहाँ अनेक जातियां आयीं और अपने साथ आर्य संस्कृति भी ले आयी। |
यहाँ आदिवासियों का नृत्य-सरहुल, मारियों का ककसार, परजा का परब, उरांवों का डोमकच, बैगा और गोड़ों का करमा के अलावा डंडा, सुवा आदि लोक नृत्य प्रमुख है। यदुवंशियों का रावत नृत्य और सतनामियो का पंथी नृत्य आज छत्तीसगढ़ वासियों के बीच बहुत लोकप्रिय है। छत्तीसगढ़ के लोक नृत्यों में बहुत कुछ समानता होती है। ये नृत्य मात्र मनोरंजन के साधन नहीं है बल्कि जातीय नृत्य, धार्मिक अनु ठान ओर ग्रामीण उल्लास के अंग भी हैं। देव पितरों की पूजा-अर्चना के बाद लोक जीवन प्रकृति के सहचर्य के साथ घुल मिल जाता है। यहाँ प्रकृति के अनुरूप ही ऋतु परिवर्तन के साथ लोक नृत्य अलग-अलग शैलियों में विकसित हुआ। यहाँ के लोक नृत्यों मे मांदर, झांझ, मंजिरा और डंडा प्रमुख रूप से प्रयुक्त होता है। इसी प्रकार मयूर के पंख, सुअर के सिर्से, शोर के नाखून, गूज, कौड़ी और गुरियों की माला इनके प्रमुख आभूषण हैं। |